वेद दुनियां के सबसे पुराने ग्रन्थ माने गए है क्योंकि कि कहा जाता है कि दुनियां का सारा ज्ञान वेदों में समाया हुआ है।
जो लोग वेद का अध्यन हर रोज करते हैं उनका ज्ञान हर रोज बढ़ता जाता हैं। तो आए हम आपको बताते हैं कि कुछ ख़ास मंत्रों के अर्थ।
मंत्र: ओ३म् वसन्त इन्नु रन्त्यो ग्रीष्म इन्नु रन्त्यः। वर्षाण्यनु शरदो हेमन्तः शिशिर इन्नु रन्त्यः।। ( सामवेद ६१६)
अर्थ :- ईश्वर का सच्चा अनुयायी वर्षभर सभी ऋतुओं का भरपूर आनंद लेता है। वसंत ऋतु उसे सुखद और रमणीय लगती है। ग्रीष्म ऋतु उसे आकर्षक और मधुर लगती है। वर्षा ऋतु उसे आनंद से परिपूर्ण लगती है। शरद ऋतु उसे मधुर और सुख की अनुभूति देने वाली लगती है। उसी प्रकार हेमंत और शिशिर ऋतुऐं उसे आनंद देने वाली लगती है।
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।।क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति।।14।। -कठोपनिषद् (कृष्ण यजुर्वेद)
*अर्थ : (हे मनुष्यों) उठो, जागो (सचेत हो जाओ)। श्रेष्ठ (ज्ञानी) पुरुषों को प्राप्त (उनके पास जा) करके ज्ञान प्राप्त करो। त्रिकालदर्शी (ज्ञानी पुरुष) उस पथ (तत्वज्ञान के मार्ग) को छुरे के समान तीक्ष्ण (लांघने में कठिन) धारा की भांति (के सदृश) दुर्गम (घोर कठिन) कहते हैं।
( अर्थात हे मानव, उठो और जागो। क्योंकि अब समय नही है कि हम अंधकार में जीए। ज्ञान को प्राप्त करो और समाज को ज्ञान कि रौशनी दो। जो व्यक्ति ज्ञानी होते हैं वे लोग समाज का कल्याण करने में तत्पर रहते हैं )
ओ३म् सं त्वमग्ने सूर्यस्य वर्चसागथाः समृषीणास्तुतेन । सं प्रियेण धाम्ना समहमायुषा सं प्रजया सँ रायस्पोषेणम्मिषीय।।
अर्थ:- इस मन्त्र में श्लेषालंकार है । मनुष्य लोग ईश्वर की आज्ञा का पालन, अपना पुरुषार्थ और अग्नि आदि पदार्थों के सम्प्रयोग से इन सब सुखों को प्राप्त होते हैं
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