गंगा गोमुख से निकलती है। एक छोटी सी जल की धारा और ध्येय यह कि सारे संसार की प्यास बुझानी है। उच्च आदर्श, धर्म निष्ठा, लगन और एकाग्रता के साथ वह उत्साह पूर्वक उछलती कूदती, पत्थरों को तोडती, अपनी राह बनाती चल पडती है।
अतुलित शौर्य, अदम्य साहस और दूरदर्शिता उसके मार्ग की विध्न बाधाओं को दूर करके सफलता के राजपथ का निर्माण करते हैं। वह छोटी सी जलधार अपने पुरूषार्थ के बल पर ही मीलों, चौडी विशाल नदी बन जाती है और धरती को धन धान्य से परिपूर्ण कर देती है।
इसी प्रकार मनुष्य जीवन का मार्ग भी कांटो और भयानक अवरोधों से भरा हुआ है। ये अवरोध हैं माया, मोह, लोभ, मद, प्रमाद, आलस्य आदि। पग पग पर ये हमारी प्रगति के मार्ग में रूकावटें खडी करते हैं। आसुरी वृत्तियां कुविचारों और कुसंस्कारों को जन्म देती हैं।
बुराईयों में आकर्षण होता है, चमक होती है, प्रलोभन होता है। इनका आक्रमण भी बडी तेजी एवं दृढता से होता है। मनुष्य को हर समय इन सबसे जुझते रहना चाहिए और दृढ प्रतिज्ञ होकर अपने को उनके चक्रव्यूह में फंसने से बचाना चाहिए।
जीवन में जो भी परेशानियां और कठिनाईयां आती हैं उनसे हमारी संघर्ष करने की क्षमता का विकास ही होता है पर शर्त यही है कि हमारा आत्मिक बल दृढ हो जब हमारे मन में यह विश्वास जाग्रत हो जाता है कि परमात्मा सर्वत्र विद्यमान हैं और हमारे पुरूषार्थ में उनका अमूल्य सहयोग रहता है तो आत्मबल बढता है और कठिनाईयां दुम दबाकर भाग खडी होती हैं। दरिद्रता कभी उनके पास आ नहीं पाती। पुरूषार्थी मल्लाह की तरह दुसरों को भी नाव में बिठाकर पार लगा देता है, स्वयं तो आनंद पाता ही है।
आज अधिकतर व्यक्ति हवाई किले बनाने में ही अपना समय नष्ट करते रहते हैं वे चाहते तो बहुत कुछ हैं पर स्वयं करना कुछ भी नहीं चाहते। कामचोरी और मुफ्तखोरी उन्हे बहुत रास आती है। अपनी कठिनाईयों से जूझने के स्थान पर दूसरों पर दोषारोपण करना बडा आनंददायक लगता है।
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ऐसे व्यक्ति स्वयं तो असफल होते ही हैं, अपने संपर्क में आने वालों का जीवन भी कष्टमय कर देते हैं। हर समय भाग्य को दोष देना और रोते रहना ही उनकी आदत बन जाती है।
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। इस तथ्य को वह भूल जाता है और यही उसकी सारी विपत्तियों का मूल कारण है। जब उसका यह विश्वास दृढ हो जाता है कि कैसी भी कठिनाई हो वह उसको परास्त करने की क्षमता रखता है, तब उसका मार्ग आसान हो जाता है।
फिर वह अनीति से लोहा लेनेमें, उनको समूल नष्ट करने में तथा नव सृजन की गतिविधियों में पूरी रूचि व उल्लास के साथ जुट जाता है। जो वास्तव में पुरूषार्थी होता है वही कुविचारों व कुसंस्कारों से, कुरीतियों व कुप्रथाओं से टक्कर लेने का साहस करता है। उन्हे ही यश व कीर्ति की प्राप्ति होती है।
यही सफल जीवन का मार्ग है। सच्चे पुरूषार्थी को अपने अंतरमन को सभी प्रकार के दोषों से शुद्ध पवित्र करके जनकल्याण के कार्यों में प्रसन्नता पूर्वक लगे रहना चाहिए। यही परमपिता परमेश्वर की आज्ञा है।
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