अनमोल वचन : Amrit Vachan, jivn main aage kese vde, सत्य, परमात्मा, आत्मा।

 


अनमोल वचन :- जो पैसा हमने कमाया,उसे हम भोग पाएँ या नहीं,कोई गारंटी नहीं । लेकिन अगर उस पैसे को कमाने के चक्कर में जो पाप कर्म हो जाते हैं,उन्हें तो।भोगना ही पड़ता है । यही कुदरत का अटल नियम हैं।


अनमोल वचन :- टुटा हुआ विश्वास*
*और छूटा हुआ बचपन,*
*जिंदगी में कभी दुबारा वापस नहीं मिलता* !!

*" नफरतों में क्या रखा हैं ..,*
*मोहब्बत से जीना सीखो..,*
            *क्योकि*
*ये दुनियाँ न तो हमारा घर हैं ...*
                *और ...*
*न ही आप का ठिकाना ..,*
*याद रहे ! दूसरा मौका सिर्फ कहानियाँ देती हैं , जिन्दगी नहीं ...*

              

अनमोल वचन :- जिसकी सोच में*
      *आत्मविश्वास की महक है*
*जिसके इरादों में*
     *हौसले की मिठास है....*
                *और*  *जिसकी नीयत में*
      *सच्चाई का स्वाद है.....*
*उसकी पूरी जिन्दगी*
     *महकता हुआ " गुलाब " है .*
👏🏻 *प्यारी-सी सुबह का प्यारा-सा नमस्कार*



  ओ३म् मिमीहि श्लोकमास्ये पर्जन्य इव ततन: । गाय गायत्रमुक्थ्यम् ।।

🌷हे विद्वान् मनुष्य ! तू (आस्ये) अपने मुख में (श्लोकम्) वेद की शिक्षा से युक्त वाणी को (मिमीहि) निर्माण कर और उस वाणी को (पर्जन्य इव) जैसे मेघ वृष्टि करता है, वैसे (ततन:) फैला और (उक्थ्यम्) कहने योग्य (गायत्रम्) गायत्री छन्दवाले स्तोत्ररुप वैदिक सूक्तों को (गाय) पढ़ तथा पढ़ा।

  अनमोल वचन :- वेद मनुष्य को प्रेरणा दे रहा है कि तू वेदवाणी का स्वाध्याय कर। वेदवाणी के स्वाध्याय से जो ज्ञान तुझे प्राप्त हो, तू उसे ऐसे फैला जैसे बादल वर्षा फैलाता है।अर्थात् ज्ञान को अपने तक ही सीमित न रक्खें बल्कि उसको लोगों में फैलायें, प्रचार करें।

अनमोल वचन :- स्वाध्याय और प्रवचन दोनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्वाध्याय शब्द के दो अर्थ हैं। स्वाध्याय का पहला अर्थ है वेद और वेदसम्बन्धी ग्रन्थों का अध्ययन। दूसरा अर्थ है स्व + अध्याय अर्थात् अपना अध्ययन। अपने अध्ययन से अभिप्राय है आत्म-निरीक्षण


अनमोल वचन :-  स्वाध्याय का पहला अर्थ है सद्ग्रन्थों का पाठ। आध्यात्मिक उन्नति के तीन साधन हैं―ईश्वरभक्ति, सत्सङ्ग और स्वाध्याय। सदग्रन्थों का पाठ अमृतपान के समान होता है और असदग्रन्थों का पाठ विष-पान के समान।

  

अनमोल वचन :- तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान इनको क्रियायोग कहते हैं। क्रियायोग का अर्थ है योग के साधन। इनके करने से अस्थिर चित्तवाला भी योग को प्राप्त हो जाता है। इन तीनों में एक 'स्वाध्याय' है

  

अनमोल वचन :- मनुमहाराज ने मनुस्मृति में स्वाध्याय पर बहुत बल दिया है। गृहस्थ के लिए मनु महाराज ने पाँच यज्ञों का विधान किया है।

  

अनमोल वचन :- स्वाध्यायेनार्चयेतर्षिन्। (मनु० ३/८१) स्वाध्याय से ऋषियों की पूजा करे अर्थात् ऋषियों की पूजा स्वाध्याय से होती है।

  
अनमोल वचन :- नित्य कर्मों में कभी छुट्टी नहीं हुआ करती। यह तो निश्चय से ब्रह्म-सत्र ही होता है। यज्ञ, सन्ध्या, स्वाध्याय पुण्य के कारण होते हैं। अनध्याय तो निन्दित कर्मों में होना चाहिए।


अनमोल वचन :- चाणक्य जी ने भी स्वाध्याय के सन्दर्भ में कहा है― मनुष्य को चाहिए कि प्रतिदिन एक श्लोक, आधा श्लोक, एक पाद अथवा एक अक्षर का स्वाध्याय करे और दान-अध्ययन करता हुआ ही दिन को सार्थक करे।

अनमोल वचन :-  ज्योतिर्मय चमकीले ढक्कन से सत्य स्वरूप परमात्मा का मुंह ढका हुआ है, अर्थात संसार की चमक-दमन, भोग - विलासों के अत्यन्त आकर्षण के कारण मनुष्य से भगवान ओझल हो गया है ।जिस दिन हमने इस संसार की चमक-दमन से, संसार के इन लुभावने भोग - विलासों से अपने को उभार लेंगे, अर्थात इस ढक्कन को उठा लेंगे, उसी समय हमें उस प्रकाश स्वरूप प्रभु का भान हो जायेगा और वही हमें अपने स्वरूप का साक्षात् कराता हुआ कहेगा कि

( य: असौ आदित्ये पुरूष: )
  जो वह आदित्य में, सूर्यमंडल में व्यास हुआ पुरूष  -- पूर्ण परमेश्वर है।

( स: असौ अहम् ) वह पुरुष में ही ( ओ३म् खं ब्रह्म) ओ३म् नाम से विख्यात, सब जगत् का रक्षक, आकाश के समान सर्वत्र व्यापक और गुण - कर्म - स्वभाव की दृष्टि से सबसे महान  -- बड़ा हूँ ।


अनमोल वचन :-   संसार के रमणीय भौतिक ऐश्वर्य के आवरण से सत्य स्वरूप प्रभु का स्वरूप ढका हुआ है । जिस दिन मानव यम -- ( अहिंसा - सत्य  - अस्तेय आदि)  - नियम   ---  ( शौच  - सन्तोष  - तप - स्वाध्याय आदि  ) आसन  - प्राणायाम  - प्रत्याहार आदि से इस सांसारिक लुभावने आवरण को उतारकर परे फैंक देगा और श्रद्धा- भक्ति निष्ठापूर्वक धारणा  - ध्यान- समाधि द्वारा उसमें समाहित होकर उसका अनुभव प्राप्त करेंगा, उस दिन वह प्रभु भी उसके सम्मुख अपना पूर्ण परिचय  देकर कण - कण में सर्वत्र उसको अपना भान करता हुआ कहेगा " जो वह आदित्यमण्डल  - सूर्यमण्डल में परिपूर्ण हुआ उसको अपने नियम में चलाने वाला पुरुष है,  सो वह में ही  ' ओ३म् ' नाम से प्रसिद्ध, सबका रक्षक, आकाश के तुल्य सर्वत्र व्यापक, सबसे सब दृष्टि से ज्येष्ठ और श्रेष्ठ पुरूष परमेश्वर हूँ ।


अनमोल वचन :-   साधकों को चाहिए कि वे जप -  तप आदि द्वारा इन सांसारिक भोग  - विलासों से ऊपर उठे, इन बाहरी आकर्षणों से विरक्त होकर,  अद्वितीय,  सर्वत्र परिपूर्ण हुए, 'ओ३म्' नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध सबके रक्षक, कण- कण और क्षण- क्षण  में बसने वाले आकाशवत् सर्वत्र व्यापक महान् परमेश्वर का साक्षात करने का हार्दिक प्रयास करें । क्योंकि यदि इस मानव चोले में आकर भी इस मुख्य लक्ष्य  - प्रभु के साक्षात करने से वञ्चित हो गये तो फिर यह महती विनष्टि होगी ।



*आंखे कितनी भी छोटी क्यो ना हो !!*
       *ताकत तो उसमे सारा*
            *आसमान देखने*
               *की होती है*    
        *ज़िन्दगी एक हसीन*
    *ख़्वाब है ,, ,, जिसमें जीने*
      *की चाहत होनी चाहिये*
          *ग़म खुद ही ख़ुशी*
           *में बदल जायेंगे*
                  *सिर्फ*
                 *मुस्कुराने*
                     *की*
                    *आदत*
               *होनी चाहिये ।



*🌹सपने वो होते हें🌹*
            *🌹जो  सोने  नही  देते🌹*
        *🌹और  अपने  वो   होते   है🌹*
           *🌹जो रोने  नही देते !🌹*

     *🌹प्यार इंसान से करो उसकी आदत से नही🌹*
           *🌹रुठो उनकी बातो से🌹*
                  *🌹मगर उनसे नही...🌹*
           *🌹भुलो   उनकी  गलतीया🌹*
                    *🌹पर उन्हें नही🌹*
                         *🌹क्योकि🌹*
            *🌹रिश्तों से बढकर कुछ भी नही 🌹*

 

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