ज्ञान मुद्रा
यह मुद्रा ज्ञान और ध्यान के लिये जानी जाती है। यह मुद्रा सुबह के समय पद्मासन में बैठ कर करनी चाहिये। इससे ध्यान केंद्रित करने, अनिद्रा दूर करने तथा गुस्से को कंट्रोल करने में सहायता मिलती है।
कैसे करें
पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर एक चटाई या योगा मैट बिछा दे।
अब पद्मासन या वज्रासन में बैठ जाये।
अपने हाथों को घुटनों पर रखे और हाथों की हथेली ऊपर की ओर आकाश की तरफ होनी चाहिए।
अब तर्जनी उंगली (अंगूठे के साथ वाली) को गोलाकार मोडकर अंगूठे के अग्रभाग (सिरे) को स्पर्श करना हैं।
अन्य तीनों उंगलियों को सीधा रखना हैं।
यह ज्ञान मुद्रा दोनों हाथो से कर सकते हैं।
आँखे बंद कर नियमित श्वसन करना हैं।
साथ में ॐ का उच्चारण भी कर सकते हैं। मन से सारे विचार निकालकर मन को केवल ॐ पर केन्द्रित करना हैं।
दिनभर में कम से कम 30 मिनिट से 45 मिनिट करने पर लाभ मिलता हैं।
ऐसे तो इस मुद्रा का अभ्यास हम किसी भी समय कर सकते हैं पर सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं।
लाभ
ज्ञान मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से सारे मानसिक विकार जैसे क्रोध, भय, शोक, ईर्ष्या इत्यादि से छुटकारा मिलता हैं।
अनिद्रा, सिरदर्द और माइग्रेन से पीड़ित लोगो के लिए उपयोगी मुद्रा हैं।
बुद्धिमत्ता और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती हैं।
एकाग्रता बढती हैं।
शरीर की रोग प्रतिकार शक्ति बढती हैं।
आत्मज्ञान की प्राप्ति होती हैं।
मन को शांति प्राप्त होती हैं।
सावधानी
यह ज्ञान मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।
अगर आप कुर्सी पर बैठ कर ये मुद्रा कर रहें है तो पैरों को हिलाना नहीं चाहिए।
इस मुद्रा में ध्यान नहीं भटकाना चाहिए।
वायु मुद्रा
यह मुद्रा शरीर में वायु को नियंत्रित करने के लिये की जानी चाहिये। यह मुद्रा बैठ कर, खडे़ हो कर या फिर लेट कर दिन में किसी भी समय कर सकते हैं। यह पेट में गैस की समस्या को दूर करती है।
कैसे करें
पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर एक चटाई या योगा मैट बिछा दे।
अब वज्रासन की तरह दोनों पैरों के घुटनों को मोड़कर बैठ जाएं।
लेकिन रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए और दोनो पैर अंगूठे के आगे से मिले रहने चाहिए।
इंडेक्स अर्थात तर्जनी को हथेली की ओर मोड़ते हुए उसके प्रथम पेरे को अँगूठे से दबाएँ।
हाथ की बाकी सारी उंगलियां बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए।
लाभ
जिन लोगों को भोजन न पचने का या गैस का रोग हो उनको भोजन करने के बाद ५ मिनट तक आसन के साथ इस मुद्रा को करना चाहिए।
इस मुद्रा को करने से गठिया, साइटिका, गैस का दर्द और लकवा आदि रोग दूर होते हैं।
वायु मुद्रा के रोजाना इस्तेमाल से शरीर में गैस के कारण होने वाला दर्द समाप्त हो जाता है।
इस मुद्रा को करने से घुटनों और जोड़ों में होने वाला दर्द समाप्त हो जाता है।
कमर, रीढ़ और शरीर के दूसरे भागों में होने वाला दर्द भी धीरे-धीरे दूर हो जाता है।
वायु मुद्रा से गर्दन में होने वाला दर्द कुछ ही समय में चला जाता है।
सावधानी
किसी भी प्रकार का शरीर में दर्द होने पर वायु मुद्रा करने से शरीर का दर्द तुरंत बंद हो जाता है लेकिन इसे आप अधिक लाभ की लालसा में अनावश्यक रूप से अधिक समय तक नही करें अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है।
पीड़ा के शान्त होते ही इस मुद्रा को खोल दें।
वायु रोगों को दूर करने के लिए गैस व यूरिक एसिड उत्पन्न करने वाले भोज्य पदार्थों का प्रयोग कुछ दिनों के लिए छोड़ दें जैसे राजमा , दालें , मटर , गोभी , पनीर , सोया इत्यादि। दालों का उपयोग करना भी हो तो मूंग साबुत का उपयोग केवल दिन में ही करें ।
आकाश मुद्रा
इस मुद्रा को नियमित रूप से करने से कान के रोग, बहरेपन, कान में लगातार व्यर्थ की आवाजें सुनाई देना व हड्डियों की कमजोरी आदि दूर होती हैं।
कैसे करें
पद्मासन या सुखासन मैं बैठे।
श्वासों की गति को सामान्य होने दे।
अपनी मध्यमा उंगली के सिरे को, अँगूठे के सिरे से स्पर्श करे और हल्का सा दबाये।
बाकी, तीन उंगलियों को सीधा रखे।
आँख बंद कर के अपनी श्वासों पर ध्यान केन्द्रित करे।
लाभ
आकाश मुद्रा से हृदय के रोग दूर होते हैँ।
ह्रदय का विकास होता है।
हड्डियों की कमजोरी दूर होती हैं।
जोड़ों के रोग में लाभदायक है।
घुटने की दर्द, सूजन इत्यादि दूर होती है।
सावधानी
यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।
इस मुद्रा को करते समय अपका ध्यान भटकना नहीं चाहिए।
इस मुद्रा को शोर व् गंदे स्थान पर नही करना चाहिए।
शून्य मुद्रा
यह मुद्रा खासतौर पर आपके कानों के लिये महत्वपूर्ण है। इससे आपके कानों का दर्द ठीक हो सकता है। और उम्र बढ़ने की वजह से कम सुनाई देने की बीमारी भी ठीक हो सकती है।
कैसे करें
एक स्वच्छ और समतल जगह पर एक चटाई या योगा मैट बिछा दे।
हाथ की सबसे लंबी उंगली मध्यमा को आराम से मोड़कर अँगूठे से उसके प्रथम पोर को हल्का सा दबाये।
बाकी, उंगलियों को सीधा रखे।
लाभ
कान का दर्द मिट जाता है।
कान में से पस निकलता हो अथवा बहरापन हो तो यह मुद्रा ४ से ५ मिनट तक करनी चाहिए।
कान के विभिन्न रोगों से मुक्ति संभव है।
सके निरंतर अभ्यास से कान के पुराने रोग भी पूर्णतः ठीक हो जाते हैं।
सावधानी
यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।
इस मुद्रा को करते समय अपका ध्यान भटकना नहीं चाहिए।
किसी आसन में बैठकर एकाग्रचित्त होकर शून्य मुद्रा करने से अधिक लाभ होता है।
पृथ्वी मुद्रा
यह मुद्रा शरीर में खून के दौरे को ठीक रखता है और साथ ही यह हड्डियों को और मासपेशियों में मजबूती लाता है।
कैसे करें
पृथ्वी मुद्रा करने के लिए सबसे पहले पद्मासन या सुखासन की मुद्रा में बैठ जाये।
अपनी हथेलियों को जांघों पर रखें और सांस पर ध्यान लगाएं।
अब अपनी अनामिका (रिंग फिंगर) को अंगूठे के टिप से जोड़ें।
बहुत अधिक दबाव न डालें। ऐसा दोनों हाथों से करें।
बाकी बची हुई तीनों अँगुलियों को उपर की और सीधा तान कर रखें।
इस मुद्रा की खासियत यह है की आप इसे कभी भी कही भी कर सकते है।
लाभ
पृथ्वी मुद्रा शरीर में प्रथ्वी तत्व बढाते है, जिसके चलते शारीरिक दुर्बलता दूर होती है।
आलस दूर होता है और शरीर में स्फूर्ति आती है।
इससे पाचन क्रिया भी दुरुस्त होती है।
यह एकाग्रता बढाने में सहायक है।
यह मुद्रा वजन बढाने में मददगार है।
सावधानी
यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।
इस मुद्रा को करते समय अपका ध्यान भटकना नहीं चाहिए।
अगर आपको कफ़ दोष है तो इस मुद्रा को अधिक समय के लिए न करें।
सूर्य मुद्रा
यह मुद्रा सुबह के समय किया जाना चाहिये, जिससे सूर्य की उर्जा आपके शरीर में समा सके।
कैसे करें
सूर्य मुद्रा करने के लिए सबसे पहले तो सिद्धासन, पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ।
अब दोनों हाँथ घुटनों पर रख लें और हथेलियाँ उपर की तरफ रहें।
अब सबसे पहले अनामिका उंगली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगा लें एवं उपर अंगूठे से हल्का सा दबाये।
बाकी बची हुई तीनों उंगलियों को बिल्कुल सीधी रहने दे।
इस तरह बनने वाली मुद्रा को अग्नि / सूर्य मुद्रा कहते है।
लाभ
सूर्य मुद्रा को दिन में दो बार 15 मिनट करने से कोलेस्ट्राल घटता है।
शरीर की सूजन दूर करने में भी यह मुद्रा लाभप्रद है।
सूर्य मुद्रा करने से पेट के रोग नष्ट हो जाते हैं।
इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से मानसिक तनाव दूर होता है और भय, शोक खत्म हो जाते है।
सावधानी
यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।
गर्मी के मौसम में इसे ज्यादा देर तक न करें।
दुर्बल कमजोर व्यक्ति यह मुद्रा न करें।
उच्च रक्तचाप वाले भी इसे कम ही करें। परन्तु निम्नरक्तचाप में बहुत लाभदायक है।
शरीर में कमजोरी आने पर सूर्य मुद्रा नहीं करनी चाहिये।
गर्मियों में यह मुद्रा कम करनी चाहिये।
अम्लपित्त और एसिडिटी की समस्या होने पर यह मुद्रा ना करें।
वरुण मुद्रा
यह शरीर में जल तत्व को नियंत्रित करने के लिये होती है। इस मुद्रा को कर के आपका चेहरा सुंदर दिख सकता है। इससे चेहरा चमकदार और चेहरे में नमी बरकरार रहेगी।
कैसे करें
पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ।
रीढ़ की हड्डी सीधी रहे एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें।
हाथ की सबसे छोटी उंगली (कनिष्का) को जल तत्व का प्रतीक माना जाता है।
जल तत्व और अग्नि तत्व (अंगूठें) को एकसाथ मिलाने से बदलाव होता है।
छोटी उंगली के आगे के भाग और अंगूठें के आगे के भाग को मिलाने से 'वरुण मुद्रा' बनती है।
बाकी की तीनों अँगुलियों को सीधा करके रखें।
लाभ
वरुण मुद्रा शरीर के जल तत्व सन्तुलित कर जल की कमी से होने वाले समस्त रोगों को नष्ट करती है।
वरुण मुद्रा स्नायुओं के दर्द, आंतों की सूजन में लाभकारी है।
इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर से अत्यधिक पसीना आना समाप्त हो जाता है।
वरुण मुद्रा के नियमित अभ्यास से रक्त शुद्ध होता है एवं त्वचा रोग व शरीर का रूखापन नष्ट होता है।
यह मुद्रा शरीर के यौवन को बनाये रखती है। शरीर को लचीला बनाने में भी यह लाभप्रद है।
वरुण मुद्रा करने से अत्यधिक प्यास शांत होती है।
सावधानी
कफ, सर्दी जुकाम वाले व्यक्तियों को इस मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नहीं करना चाहिए।
आप इस मुद्रा को गर्मी व अन्य मौसम में प्रातः सायं 24-24 मिनट तक कर सकते हैं।
जलोदरनाशक मुद्रा
इस मुद्रा से अनियमित दिनचर्या, फास्ट फूड खाने आदि से उत्पन्न होने वाली एसिडिटी की समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है व इस मुद्रा से अधिक पीरियड्स, जलोदर, बहते जुखाम आदि के समय होने वाली समस्याओं से भी निजात मिल सकती है।
कैसे करें
कनिष्ठा को अँगूठे के जड़ में लगाए।
अब कनिष्ठा को उपर अंगूठे से हल्का सा दबाये।
बाकी बची हुई तीनों उंगलियों को सीधा रखने का प्रयास करे।
ज्यादा जोर दे कर सीधा न करे, धीरे धीरे प्रयास से यह संभव हैं।
लाभ
जल तत्त्व की अधिकता से होने वाले सभी रोग, सूजन, जलोदर आदि में विशेष लाभ होता है।
सावधानी
यह मुद्रा रोग शान्त होने तक ही करें।
अपान मुद्रा
यह मुद्रा बहुमुखी है जो कि हर किसी को लाभ पहुंचाती है। यह मुद्रा शरीर में जहरीले द्रव्य से छुटकारा दिलाती है। यह मुद्रा मूत्र संबन्धि समस्या को दूर करती है और पाचन क्रिया को दुरुस्त बनाती है।
कैसे करें
सुखासन या अन्य किसी आसान में बैठ जाएँ।
दोनों हाथ घुटनों पर, हथेलियाँ उपर की तरफ एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रखें।
मध्यमा और अनामिका दोनों अँगुलियों एवं अंगुठे के अग्रभाग को मिलाकर दबाएं।
तर्जनी (अंगुठे के पास वाली) और कनिष्ठा (सबसे छोटी अंगुली) सीधी रखें।
लाभ
शरीर और नाड़ियों की शुद्धि होती है।
मल और दोष विसर्जित होते है तथा निर्मलता प्राप्त होती है।
कब्ज दूर होती है।
यह बवासीर के लिए उपयोगी है।
अनिद्रा रोग दूर होता है।
पेट के विभिन्न अवयवों की क्षमता विकसित होती है।
वायु विकार एवं मधुमेह का शमन होता है।
मूत्रावरोध एवं गुर्दों का दोष दूर होता है।
दाँतों के दोष एवं दर्द दूर होते है।
पसीना लाकर शरीर के ताप को दूर करती है।
हृदय शक्तिशाली बनता है।
सावधानी
यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।
इस मुद्रा को करते समय अपका ध्यान भटकना नहीं चाहिए।
अपान मुद्रा एक शक्तिशाली मुद्रा है इसमें एक साथ तीन तत्वों का मिलन अग्नि तत्व से होता है, इसलिए इसे निश्चित समय से अधिक नही करना चाहिए।
इसको करने से यूरिन अधिक आने की सम्भावना रहती है। इससे कोई नुकसान नहीं होता इसलिए इससे डरे नहीं।
प्राण मुद्रा
यह जिंदगी से जुड़ी मुद्रा होती है, जिसे दिन में कभी भी कर सकते हैं। इस मुद्रा से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढेगी, आंखे तेज होंगी और शरीर की थकान मिटेगी।
कैसे करें
कनिष्ठिका और अनामिका (सबसे छोटी तथा उसके पास वाली) उंगलियों के सिरों को अंगूठे के सिरे से मिलाने पर प्राण मुद्रा बनती है।
शेष दो उंगलियां सीधी रखें।
लाभ
प्राण मुद्रा हमारी प्राण शक्ति को शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करती है।
यह मुद्रा नेत्र और फेंफड़े के रोग में लाभदायक सिद्ध होती है।
इससे विटामिनों की कमी दूर होती है।
इस मुद्रा को प्रतिदिन नियमित रूप से करने से कई तरह के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
सावधानी
यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।
इस मुद्रा को करते समय अपका ध्यान भटकना नहीं चाहिए।
प्रसव के पहले आठ महीनों में इस मुद्रा का प्रयोग न करें।
प्राणमुद्रा से बढ़ने वाली प्राणशक्ति का संतुलन बनाकर रखना चाहिए।
लिंग मुद्रा
यह मुद्रा पुरुषों के लिये अच्छी मानी जाती है। यह पुरुष के शरीर को गर्म रखती है और कामवासना को बढाती है।
कैसे करें
सबसे पहले आप जमीन पर कोई चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ।
ध्यान रहे की आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो।
अब अपने दोनों हाथों की अँगुलियों को परस्पर एक-दूसरे में फसायें एक अंगूठे को सीधा रखें तथा दूसरे अंगूठे से सीधे अंगूठे के पीछे से लाकर घेरा बना दें।
आँखे बंद रखते हुए श्वास सामान्य बनाएँ।
लाभ
इस मुद्रा से शरीर में गर्मी की वृद्धि होती है, अतः इसे सर्दी में करना विशेष उपयोगी है|
सर्दी, जुकाम, दमा, खाँसी, साइनस, लकवा, निम्र रक्तचाप में लाभ।
नाक बहना बन्द होता हैं एवं बन्द नाक खुल जाती है।
इस मुद्रा को करने के दौरान कुछ अधिक मात्रा में पानी पीना अथवा फलों के रस, दूध-घी का सेवन करना अच्छा रहता है|
सावधानी
यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।
इस मुद्रा को करते समय अपका ध्यान भटकना नहीं चाहिए।
जिन को पित्त की समस्या है वो लोग इस मुद्रा को न करे।
गर्मी के मौसम में इस मुद्रा को अधिक समय तक नहीं करना चाहिए।
शंख मुद्रा
शंख मुद्रा से वाणी में मधुरता आती है और वाक्शक्ति भी बढ़ती है। वक्ताओं और शिक्षकों के लिए यह मुद्रा बेहद उपयोगी है, क्योंकि इन्हें काफी बोलना पड़ता है।
कैसे करें
बायें हाथ का अँगूठा दायें हाथ की मुट्ठी में पकडें।
अब बायें हाथ की तर्जनी दायें हाथ के अँगूठे के अग्रभाग को लगायें।
बायें हाथ की अन्य उँगलियाँ दायें हाथ की उँगलियों पर हल्का सी दबाये।
थोडी देर बाद हाथों को अदल-बदलकर पुनः यही मुद्रा करें।
इस मुद्रा में अंगूठे का दबाव हथेली के बीच के भाग पर और मुट्ठी की तीन उंगलियों का दबाव शुक्र पर्वत पर पड़ता है जिससे हथेली में स्थित नाभि और थाइरॉइड (पूल्लिका) ग्रंथि के केंद्र दबते हैं|
लाभ
नाभि व कंठस्थ ग्रंथियों के विकार ठीक होते हैं।
इस मुद्रा का दीर्घ काल तक अभ्यास करने से वाणी के दोष निवृत्त होते हैं।
आवाज की मधुरता और गुणवत्ता बढती है।
गला बैठ जाने की तकलीफ में राहत मिलती है।
स्नायुओं और पाचन संस्थान का कार्य सुचारु रूप से होने लगता है।
आँतों एवं पेडू के रोग ठीक होते हैं।
सावधानी
जिन लोगों को कफ और वात आदि की समस्या हो उन्हें यह मुद्रा अधिक समय तक नहीं करनी चाहिए।
शंख मुद्रा को किसी भी समय किया जा सकता है।
प्रतिदिन 10 से 15 मिनट दिन में तीन बार 30 से 45 मिनट इसका अभ्यास किया जा सकता है।
सहज शंख मुद्रा
इस मुद्रा से गुदा रोग जैसे बवासीर, भगंदर फिस्टुला, मर्दाना ताकत, स्त्रियों के अनिमयित पीरियड्स, रीढ़ की हड्डी की तकलीफों, बैक एक, हकलाना, तुतलाना और गले के रोग व गैस दूर हो पाचनशक्ति में वृद्धि होकर भूख तेज हो जाती है।
कैसे करें
सुखासन या वज्रासन में बैठ जाएँ।
यह एक दूसरे प्रकार की शंख है।
दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसाले।
अब हथेलियां दबाकर रखे।
और दोनों अंगूठों को बराबर में सटाकर रखे।
तैयार मुद्रा को सीने के पास पकडे या वज्रासन में बैठाने के बाद घुटनो पर रखे।
लाभ
इस मुद्रा को रोजाना करने से गुदा रोग जैसे बवासीर, भगंदर आदि पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं|
इससे हकलाना, तुतलाना और गले के सारे रोग समाप्त हो जाते हैं।
इस मुद्रा को करने से गैस दूर होती है और पाचनशक्ति में वृद्धि होकर भूख तेज हो जाती है।
मासिकधर्म समय पर न आता हो या स्राव कम या ज्यादा मात्रा में आता हो उनके लिए यह मुद्रा बहुत लाभकारी होती है।
सावधानी
जिन लोगों को कफ और वात आदि की समस्या हो उन्हें यह मुद्रा अधिक समय तक नहीं करनी चाहिए।
शंख मुद्रा को किसी भी समय किया जा सकता है।
प्रतिदिन 10 से 15 मिनट दिन में तीन बार 30 से 45 मिनट इसका अभ्यास किया जा सकता है।
आदि मुद्रा
यह मुद्रा फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाती है साथ ही यह आपके महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावी ढंग से कार्य करने में मदद करती है
कैसे करें
सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
अब अंगूठे को अंदर की और रखते हुए बाकी चारों उंगलियों को अंदर की और मुट्ठी बाँधने की स्थिति में मोड़ लीजिए सभी उंगलियों के अग्र भाग को हथेली से स्पर्श करते हुए । हाथों को घुटनो / जांघों पर रखेंगे ।
आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
अपने मन को अपनी श्वांस गति पर व मुद्रा पर केंद्रित रखिए।
लाभ
फेफड़ो के लिए अति उत्तम अभ्यास।
शरीर में आक्सीजन का स्तर ठीक रखता है।
नर्वस सिस्टम के लिए लाभकारी।
गले और सिर के भाग में खून का संचार अधिक कर इससे संबंधित रोगों में लाभप्रद।
सावधानी
यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।
इस मुद्रा को करते समय अपका ध्यान भटकना नहीं चाहिए।
2 Comments
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ReplyDeleteमानसिक स्वास्थ्य
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