ओ३म्
(हमारी वैदिक सनातन संस्कृति वेद के निर्देशों, आदेशों और उपदेशों पर ही आधारित है। इस मंत्र में देखो परमात्मा सभी मनुष्यों को शाकाहारी खानपान करने का ही निर्देश दे रहे हैं।
कई लोग जिद करते रहते हैं कि फिर ये इतने मुर्गे बकरे सूअर इत्यादि किस काम के लिए है? अरे ये स्वतंत्र रूप से पलें बढ़े तो आमतौर पर इनकी संख्या वातावरण के इको सिस्टम के अनुसार नियमित होगी। तुमने पोल्ट्री फार्म, सूअर फार्म खोलकर धंधे के लिए इनकी संख्या बढ़ा रखी है। और रही बात भेड़ बकरियों की, भेड़ों से ऊन उतरती है जिसके वस्त्र हमें चाहिए। बकरियां दूध देती हैं जिनका दूध विशेष बीमारियों में औषध रूप है। 3-4 साल पहले देश में जब डेंगू फैला था तब बकरी का दूध 1-1 हजार रुपए किलो मिला था।
जो लोग अंडे को शाकाहारी कहते हैं उन्होने शाकाहार शब्द पर ही विचार नहीं किया। शाक कहते हैं अन्न,फल सब्जियों को, आहार कहते हैं खाने को, शाकाहारी कहते हैं इस आहार के खाने वाले को। अंडा बनता है मुर्गी के मांस से। मांस वाली वस्तु शाक नहीं कही जा सकती। इसलिए अंडा मांसाहार है।
तो मनुष्य जाति के लिए मांसाहार परमात्मा ने बंधित कर रखा है। जबकि शरारती लोगों ने मनुस्मृति तक में मांसाहार के श्लोक घुसेड़ डाले हैं। जब मनुस्मृति के रचनाकार महर्षि मनु ने पहले के अध्यायों में ही मांस खाना पाप लिखा है और साथ ही यह भी कहा की मांस खाने तक 8 क्रियाएं करनी पड़ती हैं। तो मनु जी बाद के अध्याय में मांस खाने की सलाह कैसे दे सकते हैं?
यदि इन क्रियाओं में 1-1 क्रिया एक-एक मनुष्य करे तो इस प्रकार आठ मनुष्य जुड़ेंगे। ये आठों मनुष्य पापी कहलाएंगे। मांस प्राप्ति के लिए 8 क्रिया इस प्रकार होती हैं। शिकार का निर्देश देने वाला, शिकार को मारने वाला, शिकार को नगर तक लाने वाला, भूनने वाला, छीलने वाला, पकाने वाला, परोसने वाला, खाने वाला। तो यहां मांस बेचने वाला यह न सोचें की खाने वाले ना खाएं तो फिर मैं क्यों बेचूं, यह तो खाने वालों पर पाप है, मेरे पर नहीं। वही बात खाने वाले कहे कि बेचने वाला ना बेचे तो मैं क्यों खाऊं, इसीलिए बेचने वाला ही पापी है। लेकिन मनु जी ने वेद के आदेश अनुसार इन सब को पापी बताया है।
अतः परमात्मा की आज्ञा मानकर मांसाहार बंद करना चाहिए।
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