गायत्री महामंत्र की अद्भुत व्याख्या by आचार्य अरविंद कुमार शास्त्री

 


हे प्रभु ! हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित कर

   मनुष्य को क्या कर्तव्य है,क्या अकर्तव्य है, मनुष्य को किस समय क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए क्या धर्म है क्या अधर्म है अधिकांशतः  है मनुष्य विचलित हो जाता है यहां तक कि सुना जाता है कि बड़े-बड़े ध्यानी ज्ञानी लोग भी कभी-कभी अकर्मण्य होकर के मार्ग से विचलित हो जाते हैं, परंतु क्या इसका कोई मार्ग नहीं है वेदों में एक मंत्र आता है 


ओम भूर् भुव: स्वाहा

तत्सवितुर्वरेंयं, भर्गो देवस्य  धीमहि | 

धियो यो नः प्रचोदयात् |


 यह मंत्र कहता है कि है देव स्वरूप सवितः हे जन्मदाता परमपिता परमेश्वर ! क्या तूने हमें जन्म देकर के इस अंधकार मय  संसार में यूं ही छोड़ दिया है, कोई प्रकाश हमारे लिए नहीं दिया है यह कैसे हो सकता है, यह तो असंभव सा लगता है,हे प्रभु ! तुम अपने आनंद प्रकाश के साथ सदा हमारे हो यदि हम चाहें और प्रयास करें तो तुम हमें अपने प्रकाश से प्रकाशित कर सकते हो इसके लिए हमें समय रहते ही प्रयत्न करना चाहिए मंत्र कहता है (भर्गः)  अर्थात तेरे शुद्ध तेजःस्वरूप को अपने अंदर धारण करने का प्रयत्न करेंगे तुम्हारे तेजःस्वरूप को प्रत्येक मनुष्य मात्र को धारण करना चाहिए, जितना तेरे वर्णन करने योग्य शुद्ध स्वरूप का चिंतन, मनन, और श्रवण करेंगे या  जितना तुम्हारा भजन सुनेंगे तेरा विचार करेंगे ध्यान करके मन एकाग्र करेंगे,जितना तुझ में अपना प्रेम समर्पित करेंगे उतना ही तेरा शुद्ध स्वरूप हमारे अंदर धारण होता जाएगा | 

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# महर्षि  दयानद जी का उपदेश आचार्य अरविन्द कुमार जी ( लेखक )

इस प्रकार से चिंतन ~मनन करते हुए तेरे तेज से हमारी बुद्धि और हमारे कर्म ठीक दिशा में प्रेरित होते  जाएगें अर्थात इस शुद्ध स्वरूप के साथ तुम ही हमारे हृदय में बस जाओगे और तुम ही मेरी बुद्धि मन आदि सहित इस शरीर के चलाने वाले हो जाओगे फिर हमें धर्म अधर्म की उलझन मार्ग से भटका नहीं सकती | 

हे परमपिता परमात्मा ! हम सभी आज से ही तुम्हारे  शुद्ध तेज को अपने अंदर धारण करने का प्रयत्न करेंगे, प्रत्येक मानसिक विचार के साथ एक एक  जप के साथ तेज का अपने अंदर समावेश करेंगे, निश्चय है कि इस प्रकार ( भर्गः ) की प्राप्ति के साथ धर्म अधर्म के निश्चय में और सत्य असत्य के विचार करने में हमारी बुद्धि एक दिन तुम्हारी सर्वज्ञता के कारण सुचारू रूप से वेद मार्ग पर चलने वाली हो  जाएगी| प्रत्येक मनुष्य को अपनी भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के लिए स्वयं को और परिवार को नेक मार्ग पर चलने और चलाने के लिए वेदों का अनुसरण अवश्य करना चाहिए |

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